गरीब, शीश कट्या मंसूर का, दोनों भुजा समेत। सूली चढ़या पुकारता, कदै न छाड़ो खेत।। गरीब, अनलहक्क कहता चला, मंसूर सूली प्रवेश। जाके ऊपर ऐसी बीती कैसा होगा वो देश।। विचार करने योग्य बात है कि कैसा होगा वह धाम (सतलोक)? जिसे पाने के लिए मंसूर ने शीश और दोनों भुजा के साथ साथ अपना शरीर टुकड़े टुकड़े करवा दिया लेकिन अपना मार्ग नहीं छोड़ा । जब जब किसी महापुरुष ने सत्य बोला है उसे संघर्ष ही झेलना पड़ा है। ऐसे ही अब संत रामपाल जी महाराज उस सतलोक की असली वास्तविकता से जन समाज को परिचित करवा रहे है और उसी के चलते ही उन्हें भी संघर्ष करना पड़ रहा है। लेकिन यह भी सत्य है संतों के काम कभी रुका नहीं करते।
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