ज्ञान का अज्ञान पर आक्रमण 
                                   
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एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर सत शास्त्र पढ़ रहा था।
आधी रात बीत गई
जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया।
लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था, पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा।
लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई।
वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चांद को बाहर रोेक कर रक्खा।
इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे-छोटे दीए जला रखे हैं जिसके कारण परमात्मा की पहचान व चांद रूपी तत्वज्ञान बाहर ही खड़ा रह जाता है, आत्मा में प्रवेश नहीं कर पाता।
इसलिए जबतक वाणी को विश्राम नहीं दोगे तबतक काल रूपी ये मन शांत नहीं होगा।
और जब तक मन शांत नही होगा तब तक वो आत्मा व परमात्मा के बीच अवरोध उत्पन्न करता रहेगा तथा मनमानी साधना पर लगाये रखेगा।
जैसे ही मन के अवरोध को ईश्वर कृपा से समझ जाओगे तो मन के उबाल भी खत्म हो जाएंगे तथा आत्मा पूर्ण ईश्वर को स्वीकार कर पाएगी।

शांत मन हमारी आत्मा की ताकत है,
शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं।
जब पानी उबलता है तो हम उसमे अपना प्रतिबिम्ब नहीं देखपाते। और शांत पानी में हम खुद को देख सकते हैं।
ठीक वैसे ही हृदय जब शांत रहेगा तो हमारी आत्मा के वास्तविक स्वरुप तथा ईश्वर को समझ पाएंगे

                                


जीव हमारी जाति है, मानव धर्म हमारा।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, धर्म नहीं कोई न्यारा।। 
-पूर्ण संत रामपाल जी महाराज
पूर्ण गुरु समाज से जाति व धर्म का भेद मिटाता है।


ज्ञानी को जब अहंकार के चलते ऐसा लगने लगता है कि मेरे अलावा इस दुनिया में कोई ज्ञानी है ही नहीं । 

तब वो मूर्ख कहलाता है । 
🙏


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