कर्म का जाल

नीचे दिया गया चित्र एक मादा बिच्छु का है , इसकी अस्थिमज्जा पर मौजूद ये इसके बच्चे हैं, ये जन्म लेते ही अपनी मां की पीठ पर बैठ जाते हैं और उसके शरीर को ही खाना प्रारम्भ कर देते हैं, तब तक खाते हैं जब तक कि उसकी केवल अस्थियां ही शेष ना रह जाए। वो तङपती है , कराहती है , लेकिन ये पिछा नहीं छोङते , और पलभर में नही मार देते बलकि कई दिनों तक यह मौत से बदतर असहनीय पीङा को झेलती हुई दम तोङती है। 

लख चौरासी के कुचक्र में ऐसी ऐसी असंख्य योनियां हैं , जिनकी स्थितियां अज्ञात हैं , कदाचित् इसीलिए भवसागर को अगम अपार कहा गया है।  

ऋषिमत के मुताबिक यह भी इन्सानी जूनीं मे किए गये कर्मों का ही भुगतान है। इन्सान इस मनुष्य जीवन में जो कर्म करेगा , नाना प्रकार की असंख्य योनियों में इन कर्मों के आधार से ही उसे दुःख सुख मिलते रहेंगे। 



  चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय 
दोय पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय।

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