#कबीरसागर_का_सरलार्थPart113

अघासुर युग की कथा है। Part-B

‘‘सतगुरू-उवाच‘‘

परमेश्वर जी ने कहा कि हे जलरंग! मैं तो युग-युग में आता हूँ। मैं अमर हूँ। आप तो नाशवान हैं। एक समय मेरे से एक कुष्टम पक्षी मिला था। वह भी इसी ब्रह्माण्ड में रहता है। वह कह रहा था कि मैं असंख्य युग से रह रहा हूँ। उसने बहुत पुरानी बातें बताई।
‘‘जलरंग-उवाच‘‘
यह बात सुनकर जलरंग ने कहा कि जब महाप्रलय होती है, तब वह कुष्टम पक्षी कहाँ रहता है? वह भी नष्ट हो जाता होगा? उस पक्षी को मुझे दिखाओ।
‘‘सतगुरू-वचन‘‘
कुष्टम पक्षी ने मुझे बताया कि मैंने 27 हजार महाप्रलय देखी हैं। कबीर परमेश्वर बता रहे हैं कि मेरे को कुष्टम पक्षी ने बताया कि हे जलरंग! तुम सत्य मानो।
जलरंग ने कहा कि मेरे को कुष्टम पक्षी के दर्शन कराओ। यह बात सुनकर विमान में बैठकर मैं तथा जलरंग कुष्टम पक्षी के लोक में गए। हमारे साथ करोड़ों जीव भी गए जो जलरंग के शिष्य बने थे। वहाँ के बुद्धिमान हंस हमसे मिले। कुष्टम पक्षी 50 युग से समाधि लगाए था। कुष्टम पक्षी के गणों (सेवादारों) ने कुष्टम पक्षी को हमारे आने की सूचना दी। कहा कि दो महापुरूष आए हैं।
उनके साथ करोड़ों जीव भी आए हैं। आपका दर्शन करना चाहते हैं।
कुष्टम पक्षी ने कहा कि तुम उन दोनों हंसों को बुला लाओ। शेष उनकी सेना को छोड़ो। हम दोनों कुष्टम पक्षी के पास गए तो कुष्टम पक्षी ने हमारा सत्कार किया। हमारे को उच्च आसन दिया। जलरंग ने अपनी शंका का समाधान चाहा तो कुष्टम पक्षी ने बताया कि मैं कबीर पुरूष का शिष्य हूँ। जिस समय महाप्रलय होती है, सब लोक जलमय हो जाते हैं। सब जगह जल ही जल होता है। तब मैं ऐसे रहता हूँ जैसे जल के ऊपर फोग (झाग) रहता है।
यह बात सुनकर जलरंग को आश्चर्य हुआ और शर्म के मारे सिर झुका लिया। 



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